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    Hyperprolactinemia in Hindi | प्रोलैक्टिन का हाई लेवल प्रेग्नेंसी की संभावनाओं को कैसे प्रभावित कर सकता है?

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    Hyperprolactinemia in Hindi | प्रोलैक्टिन का हाई लेवल प्रेग्नेंसी की संभावनाओं को कैसे प्रभावित कर सकता है?

    25 September 2023 को अपडेट किया गया

    Medically Reviewed by

    Dr. Shruti Tanwar

    C-section & gynae problems - MBBS| MS (OBS & Gynae)

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    ब्लड में प्रोलैक्टिन हॉर्मोन के हाई लेवल को (Hyperprolactinemia meaning in Hindi) हाइपरप्रोलैक्टिनीमिया कहते हैं. इसके कारण महिलाओं में गैलेक्टोरिआ, इनफर्टिलिटी और अनियमित पीरियड्स हो सकते हैं जबकि पुरुषों में भी हाइपोगोनाडिज्म, इनफर्टिलिट और एरेक्टाइल डिस्फंक्शन की समस्या देखी जाती है. आइये इसके बारे में विस्तार से जानते हैं.

    हाइपरप्रोलैक्टिनीमिया क्या होता है? (Hyperprolactinemia meaning in Hindi)

    हाइपरप्रोलैक्टिनीमिया एक ऐसी मेडिकल कंडीशन है (Hyperprolactinemia in Hindi) जिसमें ब्लड में प्रोलैक्टिन नाम के हार्मोन का लेवल नॉर्मल से अधिक हो जाता है. प्रोलैक्टिन वह हार्मोन है जो महिलाओं में दूध बनाने और फर्टिलिटी के लिए ज़रूरी होता है. यह लाइफ थ्रेटनिंग नहीं है लेकिन इससे इंफर्टिलिटी के अलावा कई अन्य परेशानियां हो सकती हैं.

    हाइपरप्रोलैक्टिनीमिया के लक्षण (Symptoms of hyperprolactinemia in Hindi)

    हाइपरप्रोलैक्टिनीमिया के लक्षण महिलाओं और पुरुषों में अलग-अलग होते हैं. महिलाओं में सेक्स ड्राइव में कमी और बांझपन इसके मुख्य लक्षण हैं. इसके अलावा योनि में सूखेपन के कारण सेक्स के दौरान दर्द, पीरियड्स का रुकना या अनियमित होना और प्रेग्नेंट ना होने पर भी ब्रेस्ट में दूध बनना जैसे लक्षण दिखाई देते हैं.

    हाइपरप्रोलैक्टिनीमिया के कारण (Causes of high prolactin levels in Hindi)

    प्रेग्नेंसी और ब्रेस्टफ़ीडिंग के समय प्रोलैक्टिन का लेवल बढ़ना एक सामान्य बात है. इसके अलावा कई और फ़ैक्टर्स भी इसके बढ़ने का कारण हो सकते हैं; जैसे कि-

    1. प्रोलैक्टिनोमा (Prolactinoma)

    हमारे दिमाग़ में मटर के आकार का पिट्यूटरी ग्लैंड, प्रोलैक्टिन और इसके अलावा कई अलग-अलग हार्मोन बनाता है. प्रोलैक्टिन महिलाओं में मिल्क प्रोडक्शन में मदद करता है. कभी-कभी, पिट्यूटरी ग्लैंड पर एक ट्यूमर बन जाता है, जिसकी वजह से बहुत अधिक प्रोलैक्टिन हार्मोन बनने लगता है. इस प्रकार के ट्यूमर को प्रोलैक्टिनोमा (prolactinoma) कहा जाता है.

    2. मेडिकेशन (Medications)

    अलग-अलग लोगों में कुछ ख़ास दवाएँ भी प्रोलैक्टिन के लेवल को बढ़ा सकती हैं; जैसे- हाई ब्लड प्रेशर, मेन्टल हेल्थ, डाइजेस्टिव प्रॉब्लम और रिप्रोडक्टिव हेल्थ की कुछ ख़ास दवाएँ साइड इफेक्ट के रूप में प्रोलैक्टिन के लेवल को बढ़ाती हैं.

    3. हाइपोथायरायडिज्म (Hypothyroidism)

    हाइपरप्रोलैक्टिनीमिया का कारण हाइपोथायरायडिज्म भी होता है. हाइपोथायरायडिज्म के कारण थायरोट्रोपिन-रिलीज़िंग हार्मोन (TRH) का लेवल बढ़ जाता है. इससे पिट्यूटरी ग्लैंड बढ़ जाता है जिससे हाइपरप्रोलैक्टिनीमिया हो सकता है.

    इसे भी पढ़ें : आख़िर क्या होते हैं थायराइड के शुरुआती लक्षण?

    4. स्ट्रेस और फिजिकल स्टिमुलेशन (Stress and physical stimulation)

    हाइपरप्रोलैक्टिनीमिया के कई और कारण हैं; जैसे- गर्भावस्था, ब्रेस्टफ़ीडिंग, निप्पल स्टिम्युलेशन, सेक्सुअल ऑर्गेज्म, उत्तेजना और किसी तरह का सदमा लगना भी शामिल हैं. स्ट्रेस भी हाइपरप्रोलैक्टिनीमिया का एक महत्वपूर्ण कारण माना जाता है.

    हाइपरप्रोलैक्टिनीमिया का गर्भधारण पर असर (Effects of high prolactin levels on conception in Hindi)

    हाइपरप्रोलैक्टिनीमिया के कारण पीरियड्स बंद होना, बांझपन और हड्डियों की डेंसिटी कम हो सकती है. यह फर्टिलिटी को भी प्रभावित करता है लेकिन इसका इलाज संभव है.

    1. ओव्यूलेशन में बाधा (Disrupted ovulation)

    प्रोलैक्टिन हार्मोन का हाई लेवल ओव्यूलेशन को डिस्टर्ब करता है और एस्ट्रोजन के प्रोडक्शन को कम करता है. जिससे सीधे तौर पर बाँझपन की समस्या हो सकती है और टेस्टोस्टेरोन के लेवल पर असर पड़ सकता है.

    इसे भी पढ़ें : एनोवुलेशन क्या है और यह गर्भधारण में कैसे बनता है परेशानी?

    2. फर्टिलिटी हार्मोन्स से संबंधित समस्या (Suppressed fertility hormones)

    हाइपरप्रोलैक्टिनेमिक (hyperprolactinemic) रोगियों में फर्टिलिटी कम होने के पीछे का मुख्य कारण GnRH डिस्चार्ज का रुकना है. जिसके बाद गोनाडोट्रोपिन (Gonadotropin), हाइपोगोनैडोट्रोपिक (hypogonadotropic) हाइपोगोनाडिज्म (hypogonadism) और एनोव्यूलेशन (anovulation) का प्रोडक्शन कम हो जाता है और इन सभी हॉर्मोन्स की कमी इंफर्टिलिटी को बढ़ाती है.

    3. सेक्स के प्रति रुचि कम करे (Decreased libido)

    हाइपरप्रोलैक्टिनीमिया महिलाओं में एक सामान्य हार्मोनल डिसॉर्डर है जो फीमेल सेक्सुअल फंक्शन (FSD) को प्रभावित कर सकता है. इसी प्रकार पुरुषों में हाइपरप्रोलैक्टिनीमिया सेक्स ड्राइव में कमी (low libido) और डिलेड एजेकुलेशन (delayed ejaculation) का कारण बन सकता है. हाई प्रोलैक्टिन लेवल टेस्टोस्टेरोन बनने और इरेक्शन में भी बाधा डाल सकता है.

    4. मिसकैरेज की आशंका को बढ़ाए (Increased risk of miscarriage)

    फर्टिलिटी और प्रेग्नेंट होना हार्मोन्स के सही संतुलन पर निर्भर करता है, जो एक-दूसरे के साथ मिलकर और सही समय पर काम करते हैं. हाइपरप्रोलैक्टिनीमिया में प्रोलैक्टिन हॉर्मोन का हाई लेवल मिसकैरेज के रिस्क को भी बढ़ा देता है.

    5. खराब स्पर्म प्रोडक्शन क्वालिटी (Impaired sperm production)

    प्रोलैक्टिन ब्रेस्ट फ़ीडिंग मदर्स से जुड़ा हार्मोन है लेकिन यह 10 से 40 प्रतिशत तक उन पुरुषों में भी पाया जाता है जो इंफर्टिलिटी से जूझ रहे होते हैं. प्रोलैक्टिन हार्मोन का हाई लेवल स्पर्म प्रोडक्शन को कम कर देता है, सेक्स ड्राइव में कमी लाता है और इस तरह यह इंफर्टिलिटी का कारण बन सकता है.

    इसे भी पढ़ें : स्पर्म काउंट कम होने पर दिखते हैं इस तरह के संकेत!

    हाइपरप्रोलैक्टिनीमिया की पहचान कैसे होती है? (Diagnosis of hyperprolactinemia in Hindi)

    हाइपरप्रोलैक्टिनीमिया की पहचान करने के लिए रोगी की जाँच, ब्लड और हार्मोनल टेस्ट आदि किए जाते हैं.

    1. मेडिकल हिस्ट्री और फिजिकल एग्जामिनेशन (Medical history and physical examination)

    हाइपरप्रोलैक्टिनीमिया होने पर महिलाओं और पुरुषों में कुछ लक्षण दिखाई देते हैं. साथ ही, यह मेनोपॉज हो चुकी महिलाओं में भी हो सकता है. जहाँ इनफर्टिलिटी गैलेक्टोरिआ हाइपरप्रोलैक्टिनीमिया की पहचान है, वहीं बच्चों और युवाओं में ग्रोथ का रुकना, प्युबर्टी में देरी होना और पीरियड्स का रुकना इसके लक्षण होते हैं. इन सब लक्षणों को देखकर हाइपरप्रोलैक्टिनीमिया की पहचान की जाती है.

    2. ब्लड टेस्ट (Blood tests)

    डॉक्टर ब्लड टेस्ट करके प्रोलैक्टिन के लेवल का पता लगाते हैं. इसके लिए सिर्फ़ एक ब्लड टेस्ट की जरूरत होती है. आमतौर पर 25 μg/L (माइक्रोग्राम प्रति लीटर) से नीचे का लेवल नार्मल माना जाता है जबकि 25 से ऊपर का स्तर हाई 250 μg/L से ऊपर प्रोलैक्टिन का लेवल प्रोलैक्टिनोमा का संकेत होता है.

    3. रिपीट टेस्टिंग (Repeat testing)

    हर व्यक्ति का प्रोलैक्टिन लेवल रोज़ अलग-अलग होता रहता है. यदि हार्मोन का लेवल थोड़ा बढ़ा हुआ होता है तो ब्लड टेस्ट को दोबारा कराया जाता है.

    4. हार्मोनल टेस्ट (Hormonal tests)

    हाइपरप्रोलैक्टिनीमिया की जाँच के लिए कई और टेस्ट भी किए जाते हैं; जैसे- सीरम प्रोलैक्टिन (serum prolactin), थायराइड फ़ंक्शन टेस्ट (thyroid function test), रीनल फंक्शन टेस्ट (renal function test), इंसुलिन-लाइक ग्रोथ फैक्टर-1 (IGF-1), एड्रेनोकोर्टिकोट्रोफिक हार्मोन (STH), ल्यूटिनाइजिंग हार्मोन (LG), फॉलिकल-स्टिमुलेटिंग हार्मोन (FSH), टेस्टोस्टेरोन/एस्ट्राडियोल (testosterone/estradiol) और प्रेग्नेंसी टेस्ट.

    इसे भी पढ़ें : FSH, LH, Prolactin टेस्ट क्या होते हैं? फर्टिलिटी पर इनका क्या असर होता है

    हाइपरप्रोलैक्टिनीमिया का ट्रीटमेंट (Hyperprolactinemia treatment in Hindi)

    हाइपरप्रोलैक्टिनीमिया के ट्रीटमेंट में रेगुलर जाँच, दवाइयाँ, सर्जरी और लाइफ स्टाइल में बदलाव बहुत ज़रूरी है.

    1. मेडिकेशन (Medications)

    हाइपरप्रोलैक्टिनीमिया के इलाज के लिए डोपामाइन एगोनिस्ट सबसे आम दवा है. इसके इलाज के लिए एफडीए ने दो दवाओं कैबर्जोलिन और ब्रोमोक्रिप्टिन को रेकमेंड किया है क्योंकि इनके साइड इफ़ेक्ट कम होते हैं.

    2. सर्जरी (Surgery)

    जिन हाइपरप्रोलैक्टिनीमिया रोगियों का इलाज दवाओं से नहीं हो पाता है या पूरी तरह सफल नहीं होता है, उनके लिए डॉक्टर सर्जरी रिकमेंड करते हैं. नॉन-फंक्शनल पिट्यूटरी एडेनोमा या हाइपरप्रोलैक्टिनीमिया से जुड़े अन्य नॉन-लैक्टोट्रॉफ़ एडेनोमा वाले रोगियों की सर्जरी की जाती है.

    3. लाइफस्टाइल में बदलाव (Lifestyle modifications)

    हाइपरप्रोलैक्टिनीमिया के इलाज में लाइफस्टाइल में किये गए बदलाव बेहद मददगार हो सकते हैं; जैसे - तनाव कम करना, रेगुलर एक्सरसाइज, पूरी नींद लेना और डायटरी चेंजेज़. लाइफस्टाइल के ये बदलाव हार्मोनल संतुलन और इंफर्टिलिटी को दूर करने में मदद करते हैं.

    4. रेगुलर मॉनिटरिंग (Regular monitoring)

    हाइपरप्रोलैक्टिनीमिया का इलाज़ शुरू होने के बाद यह जाँचना भी ज़रूरी है कि उसका असर कितना हो रहा है. इसके लिए प्रोलैक्टिन लेवल की रेगुलर मॉनिटरिंग की जाती है जिसके लिए समय-समय पर ब्लड टेस्ट और चेकअप किए जाते हैं.

    हाइपरप्रोलैक्टिनीमिया को ठीक करने के नेचुरल उपाय (Natural remedies for hyperprolactinemia in Hindi)

    हाइपरप्रोलैक्टिनीमिया (What is hyperprolactinemia in Hindi) के इलाज के लिए दवाओं का इस्तेमाल किया जाता है. लेकिन जीवनशैली में बदलाव और कुछ नेचुरल उपाय भी हैं जो इसे जल्दी ठीक करने में आपकी मदद कर सकते हैं.

    1. स्ट्रेस मैनेजमेंट (Stress management)

    हार्मोनल इंबैलेंस में स्ट्रेस एक बहुत बड़ा कारण है और योग, ध्यान, डीप ब्रीदिंग, व्यायाम या फिर अपने किसी पसंदीदा शौक में लगे रहने से तनाव को कम करने में मदद मिलती है.

    2. हर्बल सप्लीमेंट्स (Herbal supplements)

    हार्मोनल संतुलन को मेंटेन करने के लिए कुछ पारंपरिक जड़ी-बूटियों का उपयोग भी किया जाता है. हाइपरप्रोलैक्टिनीमिया सहित कई हार्मोनल विकारों के लिए चेस्टबेरी (Vitex Agnus-Castus) के प्रयोग से फ़ायदा मिलता है.

    3. न्यूट्रिशन (Nutritional adjustments)

    हार्मोनल बैलेंस के लिए आवश्यक पोषक तत्वों से भरपूर एक बैलेंस्ड डाइट लेना भी बेहद ज़रूरी है. आप अपनी डाइट में विटामिन बी6, जिंक और मैग्नीशियम से भरपूर फूड आइटम्स; जैसे - पत्तेदार हरी सब्ज़ियाँ, नट्स, बीज और फलियों को शामिल करें और इससे आपको जररू मदद मिलेगी.

    इसे भी पढ़ें : फर्टिलिटी डाइट से कैसे बढ़ती है गर्भधारण की संभावनाएँ?

    4. रेगुलर एक्सरसाइज (Regular exercise)

    हार्मोन के लेवल को सही रखने के लिए नियमित रूप से हर रोज़़ दिन में कम से कम 30 मिनट एक्सरसाइज करनी चाहिए; जैसे- सैर करना, साइकिल चलाना या फिर स्विमिंग, आदि.

    5. पर्याप्त नींद (Adequate sleep)

    हार्मोनल बैलेंस तो ठीक रखने के लिए गहरी और पूरी नींद लेना ज़रूरी है. इसके लिए आप अपने रूटीन को इस तरह सेट करें कि आपको लंबी और पूरी नींद मिले.

    प्रो टिप (Pro Tip)

    हाइपरप्रोलैक्टिनीमिया एक गंभीर और कॉम्प्लेक्स स्थिति ज़रूर है लेकिन घबराएँ नहीं क्योंकि इस समस्या का इलाज होना पूरी तरह से संभव है. ब्लड टेस्ट, मेडिसिन, नियमित जाँच और लाइफ स्टाइल में बदलाव के द्वारा आप इस को पूरी तरह से कंट्रोल कर सकते हैं.

    रेफरेंस

    1. Thapa S, Bhusal K. (2023). Hyperprolactinemia.

    2. Majumdar A, Mangal NS. (2013). Hyperprolactinemia.

    3. Glezer A, Bronstein MD. (2022). Hyperprolactinemia.

    Tags

    Hyperprolactinemia in English

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