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16 October 2023 को अपडेट किया गया
यूटेराइन फाइब्रॉएड (uterine fibroid in Hindi) गर्भाशय में होने वाली नॉन कैंसरस ग्रोथ है जो अक्सर युवा महिलाओं में प्रेग्नेंसी की उम्र के दौरान दिखाई देती है. यह न केवल उनके रिप्रोडक्टिव सिस्टम में गड़बड़ियाँ पैदा करता है; बल्कि इससे गर्भधारण की संभावनाओं पर भी काफ़ी नेगेटिव असर पड़ता है. इससे छुटकारा पाने का एक नॉन इंवेसिव तरीक़ा है- यूटेराइन आर्टरी एम्बोलिज़ेशन (ufe meaning in Hindi). आइए इस बारे में डिटेल में जानते हैं.
गर्भाशय फाइब्रॉएड (uterine fibroid in Hindi) जिसे लेयोमायोमास (leiomyomas) या मायोमास के नाम से भी जाना जाता है, गर्भाशय में होने वाली ऐसी ग्रोथ है जिसमें कैंसर का खतरा तो नहीं होता है लेकिन इसका असर बच्चे को जन्म देने की क्षमता पर पड़ता है. ये आकार और संख्या में अलग-अलग हो सकते हैं; जैसे- एकदम छोटे और पहचान में भी न आ पाने लायक नोड्यूल्स से लेकर इतने बड़े जिनसे यूटेराइन कैवीटी तक विकृत हो जाती है.
ऐसा माना जाता है कि हार्मोनल उतार-चढ़ाव, ख़ासतौर से एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन गर्भाशय के इन फाइब्रॉएड की ग्रोथ में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. फाइब्रॉएड के कारण पीरियड्स के दौरान हैवी ब्लीडिंग, पेल्विक एरिया में दर्द या दबाव, बार-बार पेशाब आना और पीठ के निचले हिस्से में दर्द जैसे लक्षण दिखाई देते हैं. इन लक्षणों की गंभीरता और भविष्य में महिला के प्रेग्नेंट होने की इच्छा के अनुसार डॉक्टर ट्रीटमेंट के ऑप्शन डिसाइड करते हैं जिसमें ऑब्जरवेशन से लेकर मेडिसिन, मिनिमल इनवेसिव प्रोसीजर और सर्जरी तक शामिल हैं. ऐसी ही एक सर्जरी है यूटेराइन आर्टरी एम्बोलिज़ेशन. आइये जानते हैं कि इसमें क्या किया जाता है.
यूटेराइन आर्टरी एम्बोलिज़ेशन (ufe meaning in Hindi) एक मिनिमल इनवेसिव प्रोसीजर है जिसके द्वारा गर्भाशय फाइब्रॉएड का इलाज़ किया जाता है. यूएई के दौरान, रेडियोलॉजिस्ट कमर में एक छोटा चीरा लगाकर, यूटरस की आर्टरीज़ में एक पतली कैथेटर डालते हैं और इसे उन आर्टरीज़ तक ले जाते हैं जिनसे फाइब्रॉएड को ब्लड सप्लाई मिल रही हो. अब एम्बोलिक एजेंट्स को कैथेटर के माध्यम से इन आर्टरीज़ में इंजेक्ट किया जाता है, जिससे फाइब्रॉएड सिकुड़ जाते हैं और ब्लड सप्लाई की कमी के कारण अंत में डेड हो जाते हैं. अन्य सर्जिकल तरीक़ों की तुलना में यह एक अपेक्षाकृत आसान विकल्प है जिसमें रिकवरी टाइम भी कम लगता है.
आइये अब बात करते हैं इसके फ़ायदों की.
इनमें से सबसे महत्वपूर्ण है गर्भाशय को बिना निकाले समस्या का समाधान करना. हिस्टेरेक्टॉमी (hysterectomy) यानी कि गर्भाशय को पूरी तरह से हटाना या मायोमेक्टॉमी यानी कि हर एक फाइब्रॉएड को अलग-अलग हटाने जैसे सर्जिकल ऑप्शन के विपरीत यूएई में महिला का गर्भाशय बिना निकाले इलाज़ किया जाता है. यह उन लोगों के लिए ख़ासतौर पर फ़ायदेमंद है जो कम उम्र में अपनी फर्टिलिटी खोना नहीं चाहते हैं.
ट्रेडीशनल सर्जरी के विपरीत, यूएई में ग्रोइन एरिया में एक छोटा-सा कट लगाकर सर्जरी की जाती है, जिसके बाद पेट में आमतौर पर कोई निशान नहीं दिखता है.
यूएई फाइब्रॉएड के साइज़ को कम करने में बेहद कारगर है. इसमें फाइब्रॉएड को मिलने वाली ब्लड सप्लाई को बंद कर दिया जाता है जिससे वे समय के साथ धीरे-धीरे सिकुड़ जाते हैं.
फाइब्रॉएड से पीड़ित कई महिलाएँ हैवी पीरियड्स, पैल्विक एरिया में दर्द और दबाव जैसे सिंपटम्स से परेशान रहती हैं. यूएई से इन लक्षणों से राहत मिलती है जिससे ओवर ऑल क्वालिटी ऑफ़ लाइफ में सुधार आता है.
यूएई, मायोमेक्टॉमी या हिस्टेरेक्टॉमी जैसी बड़ी और कॉम्प्लेक्स सर्जरी की तुलना में आसान है जिसमें रिस्क फैक्टर भी कम होते हैं. इसके बाद भविष्य में गर्भधारण होने पर यूटेराइन रप्चर यानी कि गर्भाशय के फटने का कोई खतरा नहीं होता है, जो मायोमेक्टॉमी के बाद अक्सर बना रहता है.
यूएई के बाद पेशेंट की रिकवरी अन्य सर्जरी की तुलना में आमतौर पर तेज़ी से होती है और अधिकतर महिलाएँ कुछ दिनों से लेकर एक हफ़्ते के भीतर ही अपने सामान्य काम-काज पर लौट सकती हैं.
आइये अब जानते हैं कि यूटेराइन आर्टरी एम्बोलिज़ेशन और फाइब्रॉएड के अन्य ट्रीटमेंट ऑप्शन में से क्या बेहतर है.
यूटेराइन आर्टरी एम्बोलिज़ेशन (यूएई) की प्रक्रिया के लिए इन स्टेप्स को फॉलो किया जाता है.
सर्जरी से पहले, डॉक्टर्स की टीम पेशेंट का पूरा चेक-अप करती है, जिसमें फाइब्रॉएड के साइज़, स्थान और संख्या को चेक करने के लिए अल्ट्रासाउंड, एमआरआई या सीटी स्कैन जैसी इमेजिंग टेक्निक का सहारा लिया जाता है.
यूएई के लिए लोकल एनेस्थीसिया दिया जाता है जिसमें पेशेंट सचेत रहता है, जिसका मतलब है कि आप इस दौरान जागे हुए रहेंगे, लेकिन आपको स्ट्रेस-फ्री और कंफर्टेबल रखने के लिए दवाएँ दी जाती हैं. हालाँकि, कुछ मामलों में नॉर्मल एनेस्थीसिया का उपयोग भी किया जाता है.
फाइब्रॉएड तक पहुँच बनाने के लिए इंटरवेंशनल रेडियोलॉजिस्ट आमतौर पर कमर या कलाई में एक छोटा कट लगाते हैं और फिर कैथेटर यानी कि एक पतली, लचीली ट्यूब को रक्त वाहिकाओं के माध्यम से गर्भाशय की आर्टरीज़ तक पहुँचाया जाता है.
एक बार जब कैथेटर अपनी सही जगह पर लग जाता है, तो एम्बोलिक एजेंट (जो जेल फोम या जैसे छोटे मोती जैसे होते हैं) को गर्भाशय की आर्टरीज़ में इंजेक्ट किया जाता है. ये एम्बोलिक एजेंट फाइब्रॉएड में जाने वाली ब्लड सप्लाई को रोक देते हैं जिससे वे सिकुड़ जाते हैं और समय के साथ धीरे-धीरे डेड हो जाते हैं.
इस पूरी प्रोसेस के दौरान, इंटरवेंशनल रेडियोलॉजिस्ट, फ्लोरोस्कोपी (fluoroscopy) जैसी इमेजिंग टेक्निक का उपयोग भी करते हैं जिससे यह सुनिश्चित किया जाता है कि कैथेटर सही जगह पर सही ढंग से स्थित हुआ है या नहीं और एम्बोलिक एजेंट्स सटीक रूप से डिलीवर हो गए हैं.
एम्बोलिज़ेशन पूरा होने के बाद, कैथेटर हटा दिया जाता है और कट की जगह को एक छोटी पट्टी या स्टिच से बंद कर दिया जाता है. पेशेंट को कुछ समय तक रिकवरी एरिया में रखा जाता है.
एम्बोलिज़ेशन की प्रक्रिया के बाद पेशेंट को कुछ असुविधा, क्रैम्प और पेल्विक पेन हो सकता है, जिसे पेन किलर से कंट्रोल किया जाता है. ज़्यादातर मरीज़ उसी दिन या रात भर हॉस्पिटल में रहने के बाद घर जा सकते हैं.
रिकवरी में लगने वाला समय हर व्यक्ति में अलग-अलग होता है, लेकिन अन्य सर्जिकल ऑप्शन की तुलना में यूटेराइन आर्टरी एम्बोलिज़ेशन की रिकवरी जल्दी होती है. अधिकतर महिलाएँ कुछ दिनों से एक हफ़्ते के भीतर अपने सामान्य रूटीन में लौट जाती हैं.
इसे भी पढ़ें : गर्भधारण की मुश्किलें बढ़ा सकता है एंडोमेट्रियल पॉलीप्स!
यूटेराइन आर्टरी एम्बोलिज़ेशन (यूएई) का खर्चा, हॉस्पिटल के स्थान या शहर, हॉस्पिटल या क्लीनिक का नाम और ब्रांड, सुविधाओं, एक्सपर्ट मेडिकल टीम और पेशेंट की मेडिकल आवश्यकताओं जैसे फ़ैक्टर्स के आधार पर अलग-अलग हो सकता है. भारत में यह खर्च लगभग 50,000 रुपये से लेकर 2,50,000 रुपये तक हो सकता है. हालाँकि, इस एस्टिमेट में प्री प्रोसीजर एवेल्यूएशन (pre-procedure evaluations) और पोस्ट प्रोसीज़र फॉलो अप (post-procedure follow-up) का अतिरिक्त खर्च शामिल नहीं हैं और यह एक एडिशनल कॉस्ट हो सकती है.
कैथेटर इंसरश की जगह पर इन्फेक्शन या ब्लीडिंग.
यूटरस या आसपास के अन्य ऑर्गन्स पर अस्थायी या स्थायी चोट लगने का खतरा.
पोस्ट-एम्बोलाइज़ेशन सिंड्रोम, जिसमें दर्द, बुखार और उल्टी हो सकती है.
यूटरस के टिशूज़ के डैमेज होने के कारण इंफर्टिलिटी या गर्भपात होने का खतरा.
ब्लड सर्कुलेशन में कमी के कारण ओवेरियन फेलियर.
फाइब्रॉएड के फिर से बढ़ने पर अन्य प्रोसेस की ज़रूरत पड़ना.
इसे भी पढ़ें : आख़िर प्रीमैच्योर ओवेरियन फेलियर क्या है और क्या होते हैं इसके लक्षण?
गर्भाशय फाइब्रॉएड के इलाज में यूएई का सक्सेस रेट आमतौर पर 85% से 95% तक है. हालाँकि, यह फाइब्रॉएड के साइज़ और जगह, इंटरवेंशनल रेडियोलॉजिस्ट की एक्सपरटीज़ और रोगी की हेल्थ कंडीशन जैसे फ़ैक्टर्स के आधार पर अलग-अलग हो सकता है.
गर्भाशय फाइब्रॉएड एक ऐसी स्थिति है जिससे किसी भी महिला की न केवल रूटीन लाइफ डिस्टर्ब होती है; बल्कि उसकी फर्टिलिटी पर भी असर पड़ता है. ऐसी महिलाएँ जो भविष्य में प्रेग्नेंट होना चाहती हैं उन्हें बिना देर किए अपने डॉक्टर से मिलकर यूटेराइन आर्टरी एम्बोलिज़ेशन के बारे में जानकारी लेनी चाहिए. इस समस्या का यह एक अपेक्षाकृत आसान इलाज़ है जिससे कम से कम तकलीफ़ में फाइब्रॉएड को हटाया जा सकता है.
1. Kohi MP, Spies JB. (2018). Updates on Uterine Artery Embolization. Semin Intervent Radiol.
2. Young M, Coffey W, Mikhail LN. (2022). Uterine Fibroid Embolization.
Uterine artery embolization in English
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